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सीएम सिटी में पैसों के आगे मानवता तार तार: क्या मिल पाएगा करिश्मा को इंसाफ या फिर जिंदगी की जंग हार जाएगी करिश्मा

अमित ओझा,गोरखपुर। गोरखपुर में लोग पैसे देकर लोग मौत खरीद रहे है और स्वास्थ्य विभाग कुंभकर्ण की नींद सो रहा है।स्वास्थ्य विभाग की अनुकंपा से गोरखपुर अवैध अस्पतालों,अल्ट्रासाउंड और पैथोलॉजी का हब बनता जा रहा है।आने वाले दिनों में स्थिति कुछ ऐसी होने वाली है कि कुछ भी हो जाए अगर आपके पास पैसा है तो सब कुछ “मैनेज” हो जाएगा।स्वास्थ्य विभाग जिस तरह से मेडिकल जगत में “भस्मासुर” बना रहा है वो दिन दूर नहीं जब ये खुद स्वास्थ्य विभाग के गले की फांस बन जाएंगे।

20 वर्षीय युवती की धीरे धीरे खत्म हो रही ज़िंदगी का जिम्मेदार कौन?

बीते जनवरी में एक 20 वर्षीय युवती को एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट के आधार पर पेट में पथरी बता कर इलाज शुरू किया गया ।जब दर्द बड़ा तो इंजेक्शन पर इंजेक्शन लगा कर दर्द को कंट्रोल करने की कोशिश की गई पर मामला इस कदर बिगड़ा की लड़की का इलाज लखनऊ से ले कर दिल्ली तक चला और परिजनों के अनुसार डॉक्टरों ने ज्यादा से ज्यादा 8 महीने का समय दिस्या है उसके बाद उस लड़की की जिंदगी की कहानी खत्म हो जाएगी।

लड़की बनी जिंदा लाश,कमर से नीचे का हिस्सा हो चुका है पैरलाइज्ड

20 वर्षीय लड़की का हिस्सा कमर के नीचे से पूरा पैरलाइज्ड हो चुका है।ऐसा पीड़िता के परिजनों का का आरोप है।उनका सवाल भी अपनी जगह वाजिब है कि पथरी के इलाज में ऐसा क्या हो गया की लड़की की ये हालत हो गई और वो मौत से रोज जंग लड़ रही है जबकि सीएमओ ऑफिस से गठित टीम ने पथरी होने की संभावना से इंकार क्या है ,ऐसा परिजनों का कहना है।

बवाल के बाद मेडिकल टीम गठित,अस्पताल को क्लीन चिट

जब परिजनों ने बवाल काटा तो गीडा थाने में एफआईआर दर्ज हुई और फिर एक मेडिकल टीम का गठन भी हुआ जिसमे अस्पताल को क्लीन चिट दे दी गई। परिजनों का आरोप है कि सीएमओ ऑफिस में पैसे लेकर रिपोर्ट अस्पताल के पक्ष में लगाई गई है।जिस डॉक्टर का नाम दिखाया गया है उसने पीड़िता का इलाज किया ही नहीं था ऐसा पीड़िता के परिजनों के साथ साथ खुद पीड़िता का भी यही बयान है।

जिलाधारीकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन के बाद पुनः दोबारा से गठित हुई जांच टीम

सीएमओ ऑफिस के रिपोर्ट से असंतुष्ट परिजनों ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन किया जिसके बाद इसकी जांच एडी हेल्थ को सौंपी गई है।

क्या कहते हैं एडी हेल्थ-
इस बारे में जब हमारे संवाददाता अमित ओझा ने एडी हेल्थ से बात की तो उन्होंने कहा रिपोर्ट के आधार पर जांच की जाएगी और यदि कोई दोषी पाया जाता है तो सख्त कार्यवाही होगी।

बस कागजों में होती है कार्यवाही।
ऐसे मामलो में ज्यादातर रिपोर्ट या तो अस्पतालों के ही पक्ष में आती है या फिर कार्यवाही सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह जाती है।

मामले को बड़े लोगों की मदद से कर दिया जाता है मैनेज

ज्यादातर अस्पताल ऐसे लोगो के द्वारा संचालित किए जा रहे है जिनका मेडिकल प्रोफेशन से कोई नाता है। उनका मतलब सिर्फ “आय” से है और इसी कारण ज्यादातर हॉस्पिटल में ओपीडी चलती ही नही है। अब अगर ओपीडी नही चलती है तो मरीजों के आने का तरीका सबको पता है बस हमारे भोले भाले सीएमओ साहब नही जानते या सब कुछ जानकर भी चुप है। अब इस चुप्पी का कारण तो सीएमओ साहब ही बता सकते है।ऐसे ही मरीज जब ऐसे अस्पतालों में पहुंचते है तो डॉक्टर होते ही नही है और गैर प्रशिक्षित इलाज शुरू कर देते है। मरीज बच गया तो ठीक वरना कुछ बड़े लोग मामले को मैनेज करने के लिए सामने आकर मामले को किसी भी तरह मैनेज करा ही देते है।

 

अभी मामला एडी हेल्थ के वहां जांच के लिए है।डॉक्टरों ने 8 महीने का समय करिश्मा को दिया है ऐसा परिजनों का दावा है।इन 8 महीनों में से परिजनों के हिसाब से 3 महीने बीत चुके है और 5 महीने बचे है। अब देखना है कि इस मामले में करिश्मा को जीते जी इंसाफ मिल पाता है या फिर करिश्मा को कोई करिश्मा एक नई जिंदगी दे पता है।

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