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गोरखपुर

सत्य साईं बाबा के 97 वे जयंती पर विशेष पूजन अर्चन

गोरखपुर, 23 नवंबर। कार्यक्रम के प्रारम्भ में सभी ने सत्य साईं बाबा के चित्र पर पुष्पांजलि, ,मोमबत्ती द्विप प्रज्जवलित कर किया, उसके उपरांत कोरोना के परिदृश्य में उत्पन्न हुए माहौल में सत्य साईं बाबा की स्मृति में चिन्हित्व गरीब असहाय निर्धनों में खाद्य सामग्री व वह गृहस्थ सामानों का वितरण किया गया ,विशेष पूजन का कार्य मंजीत कुमार सप्पू बाबू ने किया l
सत साईं बाबाका जीवन कभी भी भौतिकता से प्रभावित नहीं हुआ। उन्होंने भौतिकता को गौड़ मानते थे, सदैव अध्यात्म के महत्व को देखा और उसे अपनी प्रज्ञा से ही प्रदीप्त करने में सफलता प्राप्त की। यह सच ही माना जाय कि सत्य साईं बाबा के जीवन, चिन्तन और कृतित्व के परिपेक्ष्य में उन्हें भौतिकवाद के दायरे में नहीं कैद रखा जा सकता। येसा करना संकीर दृष्टि का परिचायक है और वास्तव में यह सत्य साईं बाबा के प्रति अन्याय होगी, बाबा सनातन धर्म की श्रृंखला की ,मुख्य कड़ी हैं। उक्त उदगार यहाॅं सत्य साईं बाबा के 97 वी जयंती अवसर पर डॉ अशोक कुमार श्रीवास्तव फैंस क्लब ,शीतला प्रसाद फूलमती देवी शिक्षा संस्थान व मंगिरिश वेलफेयर ट्रस्ट के सयुक्त तत्वावधान में सीमित कार्यक्रम में डॉ अशोक सभागार मे जयंती पर पूजन व अन्य कार्यक्रम को संबोधित करते हुए समाजसेवी इंजीनियर संजीत कुमार श्रीवास्तव ने व्यक्त किये।

मनीष चंद्र व अनिल मिश्र कहा कि आज चारों ओर जहाॅं हिंसा, आतंकवाद का दौर जारी है सत्य साईं बाबा केसत्य,अहिंसा,प्रेम,दया,करुना की भावना से प्रार्थना परिपूर्ण उपदेश हमारे लिए, आज भी प्रासंगिक हो गए हैं। सत्य साईं बाबा से जीवन की वास्तविकता का बोध करने के कारण ही भगवान की उपाधि से विभूषित हो गए, परन्तु वे स्वयं इश्वरत का बोध करते रहे। तात्पर्य यह कि मनुष्य सहज भाव से ही ज्ञान के चरमोत्करश तक पहुॅंच सकता है। लेकिन उसके आदर्शो का आत्मसात पूरी तत्परता से न किये जाने केे कारण सारी दुनिया घोर संकट काल से गुजर रही है। इस स्थिति को समाप्त करने के लि, चाहिए कि आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं भावात्मक, चारित्रिक दृष्टि से भी मनुष्य विकास का मार्ग प्रशस्त करे।
ई रंजीत कुमार व मंजीत कुमार ने कहा कि सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाने वाले सत्य साईं बाबा का मानना है कि इस भौतिक जगत में दुःख का कारण इच्छा है और इच्छाओं का कोई अन्त नहीं होता। सत्य साईं बाबा ने संसार को दुःखों का सागर कहा है। दुःख है तो उसका कारण भी है। अब यह हमारा दायित्व है कि हमउस कारण को खोजें और उसका निवारण करने की सोचें। उनके अनुसार यदि मनुष्य अपनी इच्छाओं का दमन करना चाहे तो उसे सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलना होगा । संसार में दुःख का सबसे बड़ा कारण दुःख का बोध होना है।

 इस अवसर पर लव कुश बड़े लाल गोरख प्रसाद श्रवण कुमार सचिंद्र श्रीवास्तव रामू श्रीवास्तव  सोनी दुबे मनीष श्रीवास्तव शिवेश श्यागी,मांगरीश बाबू ,मानित बाबू अनुभव कुमार  उपस्थित रहे।

अनुभव कुमार

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