प्रो. राघवेंद्र प्रताप तिवारी ने अपनी सनातनी मानसिकता को पुनर्जीवित करके नेपाल के सर्वांगीण विकास के लिए योगदान देने का किया आह्वान
नेपाल के पूर्व पीएम व टीयू के प्राधिकारियों ने 48वें दीक्षांत समारोह में प्रेरक दीक्षांत समारोह अभिभाषण देने हेतु प्रो. तिवारी की सराहना की
नेपाल। पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राघवेंद्र प्रताप तिवारी ने त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल के 48वें दीक्षांत समारोह में नेपाली स्नातकों को हरित जीवन शैली की अपनी सनातनी मानसिकता को पुनर्जीवित करके नेपाल के सर्वांगीण विकास के लिए योगदान देने का आह्वान किया।
नेपाल के माननीय प्रधानमंत्री एवं त्रिभुवन विश्वविद्यालय (टीयू) के प्राधिकारियों ने त्रिभुवन विश्वविद्यालय के 48वें दीक्षांत समारोह में प्रेरक दीक्षांत समारोह अभिभाषण देने हेतु प्रो. तिवारी की सराहना की
प्रो. तिवारी ने नेपाली बुद्धिजीवियों और नीति निर्माताओं को अपने देश की शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाने हेतु नेपाल के संदर्भ में प्रासंगिक भारत की एनईपी-2020 के सर्वोत्तम प्रावधानों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया
भारत की जी20 अध्यक्षता के इस सुनहरे अवसर पर नेपाल और भारत को हमारे साझा वैश्विक दृष्टिकोण और प्राचीन मूल्यों के माध्यम से दुनिया के ज्वलंत मुद्दों को हल करने हेतु मिलकर कार्य करना होगा – प्रो. तिवारी
जैसे जनकपुर के बिना अयोध्या अधूरी है और लुम्बिनी के बिना बोधगया अधूरा है, वैसे ही नेपाल और भारत एक दूसरे के बिना अधूरे हैं – प्रो. तिवारी
बठिंडा/ललितपुर, नेपाल, 9 दिसंबर: पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा (सीयूपीबी) के कुलपति प्रो. राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी नेपाल के प्रतिष्ठित त्रिभुवन विश्वविद्यालय (टीयू) के 48वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए। उन्होंने नेपाली छात्रों को नेपाल को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नेपाल के माननीय प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देउवा ने की। नेपाल के माननीय प्रधानमंत्री और त्रिभुवन विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने नेपाल के युवाओं को प्रेरक भाषण देने और उन्हें “वोकल फॉर लोकल” के दृष्टिकोण को अपनाने तथा नेपाल को सभी प्रकार की सामाजिक बुराइयों से मुक्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए कुलपति प्रो. तिवारी की सराहना की। नेपाल के ललितपुर में स्थित टीयू पुलचौक परिसर में शुक्रवार को आयोजित हुए त्रिभुवन विश्वविद्यालय के 48वें दीक्षांत समारोह में 20,000 से अधिक नेपाली नागरिकों ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया और कुलपति प्रो. तिवारी का संबोधन सुना।
पंजाब केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी ने नेपाल के माननीय प्रधान मंत्री एवं टीयू के कुलाधिपति श्री शेर बहादुर देउवा; शिक्षा, विज्ञान तथा प्रविधि मंत्रालय, नेपाल के माननीय मंत्री एवं टीयू के प्रो-चांसलर श्री देवेन्द्र पौडेल; और त्रिभुवन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. धर्मकान्त वास्कोटा की गरिमामयी उपस्थिति में दीक्षांत समारोह अभिभाषण दिया।
कुलपति प्रो. तिवारी ने पंजाब की पावन धरा के सत श्री अकाल के संदेश से अपने संबोधन का प्रारंभ किया। उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल के 48वें दीक्षांत समारोह में स्नातक होने वाले छात्रों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता और वैदिक शास्त्रों ने हमेशा ‘सत्यमेव जयते नानृतम्’ और ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ का संदेश दिया है। हमारी सनातनी संस्कृति ने हमें कर्म और धर्म के मार्ग पर चलने, प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने, मानवीय सभ्यता के कल्याण में योगदान देने और सतत जीवन शैली अपनाने के लिए निर्देशित किया है ताकि मानव जाति को अस्तित्वगत संकट का सामना न करना पड़े। इसलिए नेपाल में युवाओं को हमारी सनातनी मानसिकता को पुनर्जीवित करना होगा और नेपाल के सर्वांगीण विकास के लिए कर्म योगी के रूप में कार्य करना होगा।
अपने संबोधन में प्रो. तिवारी ने रेखांकित किया कि 21वीं सदी की शिक्षा हमारी प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली पर केंद्रित होनी चाहिए, जहां गुरु शिष्यों को उनके सीखने के साधन को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। विश्वविद्यालयों को छात्रों के सर्वांगिक विकास के लिए आईसीटी आधारित शिक्षण, अधिगम और मूल्यांकन के माध्यम से सीखने के व्यापक अवसर प्रदान करना चाहिए। उन्होंने संस्कृत को बढ़ावा देने में नेपाल के प्रयासों की सराहना की और रेखांकित किया कि भारत की एनईपी2020 के परिवर्तनकारी सुधार 21वीं सदी के शिक्षार्थियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
प्रो. तिवारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में ज्ञान प्राप्त करने वाले गौतम बुद्ध और जनकनंदिनी सीता का जन्म स्थान नेपाल देश में ही माना जाता है। उन्होंने कहा कि सात्विक और वैदिक परंपराओं के अनुसार आदि शंकराचार्य को कर्नाटक के भाट-ब्राह्मण परिवार के पुजारियों को श्री शारदा पीठम, श्रृंगेरी में पूजा करने के लिए मुख्य पुजारी के रूप में चुने जाने की परंपरा स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। नेपाली बाबा विश्वनाथ को उसी तरह पूजते हैं जैसे वे भगवान पशुपतिनाथ को मानते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जैसे जनकपुर के बिना अयोध्या अधूरी है और लुम्बिनी के बिना बोधगया अधूरा है, वैसे ही नेपाल और भारत एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल दोनों देश मैत्री और सहयोग का एक अनूठा रिश्ता साझा करते हैं, जहाँ खुली सीमाओं के साथ-साथ दोनों देशों के नागरिक आपसी भाईचारे, संस्कृति, विश्वास और जीवन शैली में समानता का आनंद लेते हैं। भारत की जी20 अध्यक्षता के इस सुनहरे अवसर पर नेपाल और भारत को हमारे साझा वैश्विक दृष्टिकोण और प्राचीन मूल्यों के माध्यम से दुनिया के ज्वलंत मुद्दों को हल करने हेतु मिलकर कार्य करना होगा। उन्होंने युवा स्नातकों को शुभकामनाएं देते हुए और उन्हें अपने जीवन में हमेशा ‘प्रकृति’ और ‘राष्ट्र’ को पहले मानने की प्रेरणा देते हुए अपने संबोधन का समापन किया।
अंत में, टीयू के माननीय कुलपति प्रो. (डॉ.) बासकोटा जी और अधिकारियों ने मुख्य अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने और नेपाल के छात्रों को एक प्रेरक संबोधन देने के लिए प्रो. तिवारी का आभार व्यक्त किया। इस समारोह में नेपाली छात्रों, उनके माता-पिता और टीयू कर्मचारियों ने भाग लिया।