जिसे भगवान का ज्ञान नहीं उसका जीवन है अपवित्र- राघव ऋषि
पवन गुप्ता, गोरखपुर। ऋषि सेवा समिति गोरखपुर द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पाँचवें दिन का शुभारम्भ अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पूज्य राघव ऋषि जी नन्द महोत्सव से किया तो सम्पूर्ण पंडाल ब्रजमय बन गया | पुष्पवृष्टि व गुलाल आदि से लोगों ने बालकृष्ण भगवान का जन्मोत्सव मनाया। नन्द अर्थात् जो सभी को आनन्द दे। मनुष्य जन्म सभी को आनन्द देने के लिए है। शरीर को मथुरा और हृदय को गोकुल यदि नन्दरूपी जीव बनता है तो प्रभु की कृपा प्राप्त होती है | भगवान ने बाललीला में सबसे पहले पूतना का वध किया | पूत+ना अर्थात् जो पवित्र नहीं है वो है पूतना | अज्ञान पवित्र नहीं है | संसार में रहतें हुए समस्त ज्ञान प्राप्त किया परन्तु भगवान का ज्ञान नहीं है तो उसका जीवन अपवित्र हैं जिसकी आकृति सुन्दर हैं एवं कृति बुरी है, वही पूतना है | शरीर बहार से तो सुन्दर है किन्तु हृदय विष से भरा हुआ है वही पूतना है | जीव तर्क कुतर्क करके भगवान पर कटाक्षेप करता है फिर भी प्रभु उस पर कृपा कर सदगति देते है | पूज्य ऋषि जी के एकमात्र सुपुत्र सौरभ ऋषि ने ”ज़री की पगड़ी बाँधे” से बालकृष्ण की भजन के माध्यम से पूरी झाँखी खीची तो सभी हर्षातिरेक हो गए | माखनचोरी लीला का वर्णन करते हुए ऋषि जी ने बताया कि पवित्र मन ही माखन है जिसका मन पवित्र होता है भगवान उसी के घर पधारकर उसके हृदय को चुरा लेते है | गोपियाँ तल्लीन होकर घर-गृहस्थी के कार्य करते हुए भगवान के लिए माखन विलोडती है | कथास्थल पर माखन की हांडी भगवान ने फोड़कर को प्रसाद बांटा | यशोदा अर्थात् यश:ददाति इति सा यशोदा | जो दूसरों को यश दे भगवान उसी के गोद में रहते हैं | मन पूर्णत: वासनाहीन होने पर ईश्वर का साथ जा मिलता है |
कौशिकी संहिता में कथा आती है कि भगवान शिव ही बाँसुरी के रूप में आए | रामावतार में हनुमान जी ने चरणों की सेवा की तो कृष्णावतार में वंशी के रूप में शिव की सेवा की | अघासुर अजगर का रूप लेकर आया और गोपाल को निगलने लगा | अघ अर्थात् पाप | पाप को भगवान ही मारते है | भगवान की लीला में ब्रह्माजी को मोह हुआ तो भगवान ने उस मोह को भंग किया |
बाललीला का वर्णन करते हुए यशोदा के स्नेहपूरित वात्सल्य की व्याख्या करते हुए पूज्य ऋषि जी ने कहा की यशोदा जी दधिमंथन कर रही है | मुख पर पसीने की बूंदें झलक रही है | भगवान की सेवा समय उनका नाम मुख से उच्चारण हो, मन से स्मरण, और सेवा के श्रम से पसीने से सारा शरीर भींग जाए | ठाकुर जी की सेवा में न लगने वाला शरीर व्यर्थ है | सेवा करते-करते आँखें गीली हों और हृदय पिघल जाना चाहिए | जबतक व्यवहार पूर्णत: शुद्ध नहीं होगा तबतक भक्ति भलीभाँति नहीं हों पाएगी | दधिमंथन करते समय यशोदा के तन,मन, वचन एक हो गए थे | ब्रज में एक मलिन फूल-फल बेचने आई भगवान ने उससे फल मांगे उसकी टोकरी रत्नों से भर गई | जो व्यक्ति अपने सत्कर्म – रूपी फल भगवान को अर्पित करते हैं उसके जीवन-टोकरी को भगवान सुख सुविधा के रत्नों से भर देते हैं |
भक्ति और कर्म
भक्ति और कर्म में वैसे कोई अन्तर नहीं है | प्रभु को प्रसन्न करने के लिए किया गया कर्म ही भक्ति है | जो कोई प्रत्येक कर्म ईश्वर के लिए करता है उसके वो सारे कर्म भगवान के लिए भक्ति बन जाता है | कर्म करते समय मन ईश्वर में संलग्न रहे तो प्रत्येक क्रिया भक्ति बन जाती है | ईश्वर द्वारा दी गई सिथिति में आनन्द और सन्तोष मानों कर्म के फल की इच्छा न रखो | कर्म का कैसा, कितना, कब फल दिया जाए, वो भगवान की सोचने की बात है |
गोवर्धन लीला की मार्मिक व्याख्या करते हुए ऋषि जी ने कहा की गो का अर्थ है भक्ति | भक्ति को बढ़ाने वाली लीला ही गोवर्धन लीला है ‘ | जीव का घर भोग भूमि है अत: भक्ति बढ़ाने के लिए थोड़े समय किसी पवित्र स्थान में रहकर साधना करनी चाहिए | भगवान ने सभी ब्रजवासियों से महालक्ष्मी का पूजन कराया जो दीपावली के सम्पन्न हुआ | सारे ब्रजवासियों ने भेंट व खाद्य सामग्री गोवर्धन जी के लिए लाई | कन्हैया स्वयं पूजन करा रहा है | गोवर्धन जी का अभिषेक, श्रृंगार व छप्पन प्रकार के भोग अर्पण किया गया | इस अवसर पर जनसामान्य ने भी भगवान को नैवेद्य अर्पण किया | गोवर्धनलीला के समय कन्हैया सात वर्ष का था | सौरभ ऋषि ने “मैं तो गोवर्धनको जाऊं” भजन गाया तो समस्त श्रोतागण अपने स्थान से उठकर नृत्य करने लगे | पूरा वातावरण भक्तिमय बना गया | ब्रजवासियों की रक्षा भगवान ने गोवर्धननाथ जी को धारण कर लिया | {गिरिराज धरण की जय} से पूरा पाण्डाल गुंजायमान हो गया | इन्द्र ने भगवान का दूध से अभिषेक किया जिसे ‘सुरभिकुण्ड’ में एकत्रित किया गया |
प्रत्येक श्रोतागण द्वारा स्वनिर्मित भोग गोवर्धन जी को समर्पित किया गया तथा छपन्नभोग का दिव्यभोग समस्त भक्तगणों द्वारा श्रीगोवर्धन जी की दिव्य झांकी के चरणों में समर्पित किया गया।
सर्वश्री रामाधार वर्मा, कन्हैया लाल अग्रवाल, बनवारी लाल निगम, मुन्नालाल गुप्ता, सतीश सिंह, सौरभ रूंगटा, बिष्णु नन्द द्विवेदी, रामशंकर त्रिपाठी, वीरेंद्र पाठक, विनय पाण्डेय, उदय प्रताप सिंह, रुद्र प्रताप त्रिपाठी, राजीव त्रिपाठी, रमेश राज सहित अनेक गणमान्य भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की।
समिति के मीडिया प्रभारी श्री विनोद शुक्ल ने जानकारी दी कि कल भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य बारात निकाली जाएगी जिसमें वरपक्ष के भक्तगण पीले वस्त्र में भगवान की दिव्य झांकी के साथ नृत्य करते हुए कथास्थल पहुचेंगे जहां विवाहमण्डप में श्री रुक्मिणी जी के साथ भगवान की पाणिग्रहण लीला संपन्न होगी।