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हाशिए के समाज के साथ हमेशा खड़ी नज़र आती है नागार्जुन की कविता:- प्रो.राजेन्द्र प्रसाद

बोधगया, बिहार।

सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में विद्यमान चिंता को स्वर देने का प्रयास एक सजग नागरिक और कवि हमेशा करता है। नागार्जुन ने तुलसीदास की तरह स्वांतःसुखाय रचनाएं नहीं लिखीं। वे आजीवन तीक्ष्ण राजनैतिक चेतना से वाबस्ता होकर अपनी कविताई करते रहे। नागार्जुन का विराट रचना-संसार व्यापक जन-संवेदना को समाहित करता है।

उपर्युक्त बातें मगध विश्वविद्यालय के कुलपति और वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के प्रभारी कुलपति प्रो. राजेन्द्र प्रसाद ने शुक्रवार को आयोजित एकदिवसीय वेब-गोष्ठी में कहीं। यह गोष्ठी मगध विश्वविद्यालय के हिन्दी स्नातकोत्तर विभाग द्वारा आयोजित की गई, जिसका विषय था –’आज का समय और नागार्जुन का कविता-जनपद’। इसी सन्दर्भ में पाखण्ड की कविता से दूर रहने का निवेदन कुलपति ने किया।

प्रशासनिक कार्यों का दायित्व निभाते हुए साहित्य-सृजन को एक अभिरुचि के रूप में पल्लवित करने की बात प्रो. राजेन्द्र प्रसाद ने कही। उन्होंने अपनी कविता में ‘न नामवर बनो, न कबीर’ कहकर व्यक्तित्व को अद्वितीय बनाने और किसी के भी अन्धानुकरण से बचने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने प्रो. चौथीराम यादव के प्रति आदर व्यक्त करते हुए मगध विश्वविद्यालय के ज्ञान-संसार को आगे भी समृद्ध करने की बात की।

गोष्ठी के मुख्य वक्ता और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष तथा हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक प्रो. चौथीराम यादव ने नागार्जुन की दो टूक और बेबाक शैली का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि नागार्जुन का राजनीतिक बोध कई आलोचकों के गले नहीं उतरता। उनकी कविताओं के बहाने साहित्य और कविता की तात्कालिकता और शाश्वतता का विवाद चलता रहा जो आज भी जारी है। बिना तात्कालिक कविताओं के नागार्जुन का सम्पूर्ण मूल्यांकन नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि धूमिल ने लोकतंत्र के पतन और आधी अधूरी आज़ादी के बारे में जो कहा, वह नागार्जुन के परम्परा में ही है।

प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि नागार्जुन ने आज़ादी के सत्त्ता हस्तांतरण के क्रम में बनी अंतरिम कांग्रेस सरकार पर व्यंय करते हुए लिखा – ‘खादी ने मलमल से अपनी साठगाँठ कर डाली है’। यह बात आज के समय को भी उसी गम्भीरता से रेखांकित करती है। इंदिरा गांधी को लोगों ने दुर्गा कहा लेकिन नागार्जुन ने लोकतंत्र और जनता की प्रतिबद्धता से युक्त होकर प्रश्न खड़ा किया कि ‘इंदू जी इंदू जी क्या हुआ आपको, सत्ता के मद में भूल गईं बाप को।’ साम्प्रदायिकता के सन्दर्भ में उन्होंने कहा – ‘बाल ठाकरे, बाल ठाकरे, बर्बरता की खाल ठाकरे’। 

प्रो. चौथीराम जी ने बताया कि नागार्जुन ने अपने समय को पहचाना। हाशिए के समाज के उनकी कविता हमेशा खड़ी रही। ‘हरिजन गाथा’ में उन्होंने लिखा – ‘ऐसा तो कभी नहीं हुआ। ‘तालाब की मछलियां’ जैसी स्त्री विमर्श की बड़ी महत्त्वपूर्ण कविता उन्होंने लिखी। अस्मितामूलक विमर्श की कविताएं वे पहले से ही लिखते रहे। इन सभी कारणों से  उनका कविता-जनपद मुख्य धारा कहे जाने वाले वर्गों में बहुधा स्वीकार नहीं हो पाता।

चौथीराम जी ने कहा कि जब विनोबा भावे भूदान आंदोलन चला रहे थे, तो इस आंदोलन से जुड़े स्वार्थी तत्त्वों को नागार्जुन ने पहचाना और लोक छंद में कविता लिखी ‘हर गंगे’। नागार्जुन लोक-शक्ति के उपासक हैं। कांग्रेस के खिलाफ खड़े हुए खिचड़ी विप्लव से उनका मोहभंग हुआ। उनका विश्वास था कि अंतिम क्रांति अग्निपुत्रों द्वारा ही होगी। कबीर का साहस लिए नागार्जुन ही थे, जो हिन्दी क्षेत्र में प्रथमतः ईश्वर की मृत्यु की घोषणा करते हुए कह सके- ‘कल्पना के पुत्र हे भगवान’।

बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए हिन्दी विभाग, मगध विवि. के अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार ने कुलपति प्रो. राजेन्द्र प्रसाद के निर्देशन में विश्वविद्यालय में बढ़ रही अकादमिक गतिविधियों को रेखांकित किया। प्रो. विनय कुमार ने विस्तार से नागार्जुन के जीवन और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए आज के समय में उनकी प्रासंगिकता को उजागर किया।

कुलपति प्रो. राजेन्द्र प्रसाद और हिन्दी विभाग के वरीय आचार्यों प्रो. विनय कुमार, प्रो. विनोद कुमार सिंह, प्रो. भरत सिंह, प्रो. सुनील कुमार और प्रो. ब्रजेश कुमार राय के निर्देशन में इस वेब-गोष्ठी का आयोजन किया गया। संचालन, समन्वयन और धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग के सहायक आचार्यों, क्रमशः, डॉ. परम प्रकाश राय, डॉ. अजित सिंह और डॉ. राकेश कुमार रंजन ने किया। हिन्दी विभाग से डॉ. अनुज कुमार तरुण और डॉ. अम्बे कुमारी भी जुड़ी रहीं। मगध विश्वविद्यालय के पीआरओ और जनसंचार समूह और पत्रकारिता विभाग के समन्वयक डॉ. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने अतिथियों और श्रोताओं के लिए स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया और उपस्थित वक्ताओं का परिचय कराया। विभिन्न विभागों और विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, शोधार्थी और विद्यार्थी तथा मीडियाकर्मी भी गोष्ठी से जुड़े रहे।

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