अस्तित्व खोते जा रहे मिनी सचिवालय

लक्ष्मीपुर महराजगंज गांव के लोगों को जरूरी कागजातों के लिए ब्लाक का चक्कर न लगाना पड़े, इसके लिए सभी ग्राम पंचायतों में लाखों खर्च करके पंचायत भवन का निर्माण कराया गया। बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों की स्वार्थपरता एवं सरकारी मुलाजिमों की मनमानी ने शासन की मंशा पर ही पानी फेर दिया। मिनी सचिवालय के नाम से पहचाने जाने वाले पंचायत भवन रखरखाव के अभाव में अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
शासन की मंशा थी कि प्रत्येक गांव में एक सचिवालय भवन हो, जहां ग्राम पंचायत से संबंधित सभी दस्तावेज उपलब्ध रहें। गांववालों को निवास, जाति व कुटुंब रजिस्टर की नकल, खसरा, खतौनी, जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज आसानी से मिल सकें। इसके लिए ग्राम सेक्रेटरी, पंचायत मित्र सहित संबंधित कर्मचारी की उपस्थिति भी अनिवार्य कर दी गई। शासन की सोच थी कि ग्राम पंचायत की बैठकें भी संसद भवन की तरह ग्रामीणों के बीच खुले कमरे में होगी। लोग गांव के चहुमुखी विकास पर अपना नजरिया सबके समक्ष रखेंगे और जो सबसे उचित निर्णय होगा, उस पर कार्य होगा। बावजूद इसके जनप्रतिनिधि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए ऐसा नहीं होने दिए। वे ग्रामसचिव के सहयोग से पंचायत भवन पर बैठक करना उचित ही नहीं समझते। स्थिति यह है कि लक्ष्मीपुर ब्लाक के अधिकांश ग्राम प्रधानों द्वारा बैठक पंचायत भवन पर नहीं किया जाता है और न ही कोई कर्मचारी पंचायत भवन पर समय देता है। भवन वीरान पड़े हुए हैं। उसमें कहीं पशु बांधे जा रहे हैं तो कहीं गोबर, गोइठा, भूसा आदि रखा जा रहा है। लक्ष्मीपुर विकास खंड के मानिक तलब, कोटकम्हरिया,हरैया रघुवीर सहित दर्जनों गांव में बने पंचायत भवन का बुरा हाल है। जनप्रतिनिधि की उपेक्षा के कारण लाखों की लागत से बने भवन का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है।