होली पर्व है उपासना महासाधना का पर्व-राघवेंद्र त्रिपाठी
संत कबीर नगर।
होली का पर्व समीप है और होली इस लौकिक जगत में रंग गुलाल और अबीर से खेली जाती है, पानी से खेली जाती है, पानी में रंग मिलाकर खेली जाती है। परंतु जो बंधुजन आध्यात्मिक संसार के रहस्यों को जानते हैं, उनमें से अधिकांश को इस रहस्य का भी ज्ञान है कि होली साधना-आराधना के माध्यम से उन्नति के आकाश में छलांग लगाने का और पूरे जीवन को आनंदमय और मस्ती भरा बनाने का पर्व है। उच्च कोटि के साधक और योगीजन होली के पर्व की प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि जिन साधनाओं को सिद्ध करने के लिए काफी समय लगता है, वे साधनाएं होली के अवसर पर बहुत ही कम समय में तुरंत सिद्ध हो जाती हैं।
और साधना से भी ऊंची क्रिया परमपूज्य सद्गुरु भगवान डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के अनुसार उपासना है। होली उपासना का सिद्ध महादिवस और महापर्व है। सद्गुरु भगवान के शब्दों में लिखा जाए तो “*जो सही अर्थों में उपासक होता है, वह हजार-हजार योगियों से ऊपर होता है, हजार-हजार साधनाओं से ऊपर उठा हुआ होता है। आने वाला युग उसकी अभ्यर्थना करता है , उसकी प्रार्थना करता है, उसकी स्तुति करता है। उच्चकोटि के योगी और यति उसके सामने अपने आपको बौना अनुभव करते हैं, उसके सामने कोई भी साधना, कोई भी मंत्र जप ,कोई भी तंत्र, कोई भी योग बहुत छोटे बन जाते हैं, सब कुछ अपने-आप में बहुत नीचे की ओर रह जाता है “वस्तुत: उपासना उच्चतम कोटि की आध्यात्मिक सफलता और पूर्णता हस्तगत करने का शॉर्टकट है। यह आध्यात्मिक शक्ति के खजाने की चाबी प्राप्त करने की क्रिया है। आज ग्रुप में सद्गुरुदेव की दिव्य वाणी और लेखनी में उपासना के महत्व और उपासना की क्रिया को प्रयोग में लाया जा सकता है,
साधना के और अध्यात्म के पथ पर गतिशील-प्रगतिशील साधकों को इस उपासना महाप्रयोग के माध्यम से बहुत अधिक अनुकूलता प्राप्त हो सकेगी