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गोरखपुर

न्यायिक निर्णय में विलंब,भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद

– सत्याग्रही 836 दिनों से सत्याग्रह स्थल पर असिन

– शासकीय तंत्र के संग, भ्रष्टाचारियों का मृदंग

गोरखपुर। लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश में निरंकुश भ्रष्टाचार में कहीं न कहीं शासकीय तंत्र की सहभागिता नजर आ रही है वरना सीएम सिटी में कैग रिपोर्ट आधारित भ्रष्टाचार के विरुद्ध तीसरी आंख मानव अधिकार संगठन द्वारा 836 दिनों से प्रचलित सत्याग्रह संकल्प शासकीय तंत्र की उदासीनता का शिकार न होता। ऐसा लगता है कि शासकीय तंत्र भ्रष्टाचारियों के भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए कथित तौर पर भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस का शंखनाद करती रहती है,जिसका धरातल पर व्यवहारिक वजूद नदारद है।
अब गंभीर चिंतन का विषय है कि सरकार की वर्तमान कार्यशैली में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक सत्याग्रह संकल्प के पदचिन्हों पर चलने वाले सत्याग्रहियों का क्या होगा?
क्या वर्तमान सरकार में सत्याग्रह संकल्प करना अपराध है?
आखिर सरकारें और सरकार के कारिंदे सत्याग्रह व आंदोलनकारियों से वयमनष्यता क्यों करते हैं?
क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्याग्रह व आंदोलन अभिशाप है?
क्या कार्यालय परिसरों में सत्याग्रह और आंदोलन को निषेध करना संवैधानिक स्वरूप है?
क्या लोकतंत्र के मूल वजूद यही हैं? अब यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सत्ता के नशे में मगरूर सरकारें अपने काले करतूतों को सार्वजनिक होने से भयभीत होने के कारण दमनकारी नीति पर आमादा हैं,
जो किसी भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
यदि सरकारें भ्रष्टाचार को आत्मसात करना चाहती हैं तो उन्हें चाहिए कि भ्रष्टाचार को संवैधानिक स्वरूप दे दें ताकि भ्रष्टाचार जैसे काले करतूतों के विरुद्ध उठती लोकतांत्रिक आवाजों को कुचलने व दबाने की आवश्यकता न पड़े
और सत्तासीन लोग आमजन की गाढ़ी कमाई को अपने निरंकुश भ्रष्टाचार के कोपभाजन का शिकार बनाते रहें। अब यह समझ से परे हैं कि भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगाती मदमस्त सरकारों को भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की पाठ कौन पढ़ाये? क्योंकि इन सरकारों का न्यायिक व्यवस्थाओं पर भी समय-समय पर अनाधिकृत कुठाराघात करने की चेष्टा बनी हुई है,जैसा कि विगत दिनों सरकार और न्यायिक व्यवस्था के बीच विवाद देखा गया था।
उपरोक्त बातें सत्याग्रह पर बैठे सत्याग्रहियों ने मुखर होकर कहीं।

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