मोबाइल गेम और गैम्बलिंग से गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो रहे बच्चे
उमेश मद्धेशिया
नौतनवा: आनलाइन गेमिंग का क्रेज केवल बच्चों-किशोरों में ही नहीं, बल्कि बड़ों में भी खूब देखा जा रहा है। कोरोना काल में लाकडाउन के दौरान बच्चों का झुकाव भी इन गेम्स के प्रति और ज्यादा बढ़ा है लेकिन अब खतरा सिर्फ आनलाइन गेमिंग तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसकी आड़ में गैम्बलिंग यानी जुए का गेम भी खेला जा रहा है। हर वर्ग के हिसाब से गेमिंग एप्स और साफ्टवेयर्स भी मौजूद हैं, लेकिन देश-दुनिया की कुछ कंपनियां अब आनलाइन गेमिंग की आड़ में युवाओं को गैंबलिंग के जाल में भी फंसाने लगी है।
ऑनलाइन गेमिंग का क्रेज केवल बच्चों-किशोरों में ही नहीं, बल्कि बड़ों में भी खूब देखा जा रहा है। हर वर्ग के हिसाब से गेमिंग एप्स और सॉफ्टवेयर्स भी मौजूद हैं, लेकिन देश-दुनिया की कुछ कंपनियां अब ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में युवाओं को गैंबलिंग के जाल में भी फंसाने लगी हैं। किशोर-युवा भी इसमें आसानी से फंस जाते हैं, क्योंकि उन्हें गेम में पैसे जीतने का मौका मिल जाता है। गेमिंग के दौरान जीतने पर गिफ्ट, नगद धनराशि के साथ दूसरे तरह के ऑफर्स भी दिए जाते हैं। इन गेम्स के चक्कर में फंस कर युवा न सिर्फ अपना कीमती वक्त, बल्कि पैसा भी बर्बाद कर रहे हैं। अधिकतर गेम्स में व्यूइंग रूम एक्सपीरिएंस के साथ ऑनलाइन प्लेयर्स के साथ खेलने की सुविधा होती है, जिसमें लिंक को फ्रेंड्स आदि को शेयर कर गेम के परिणाम पर सट्टा लगाते हैं। ऐसे में अभिभावकों को बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
अब बच्चे कुछ घंटे फोन पर बिता रहे हों, सिर्फ ऐसा नहीं है। जैसे-जैसे उनकी ऑनलाइन गेमिंग की लत बढ़ रही है, उनका स्वभाव भी बदल रहा है। तनाव होना, नजर कमजोर होना तो आम है, लेकिन बीते सालों में इस लत ने बच्चों खासकर किशोरों को हिंसक भी बना दिया है। अपने ही घर में चोरी करना, झूठ बोलना जैसी आदतों ने जोर पकड़ा है। कुछ मामलों में तो बच्चों ने आत्मघाती कदम उठाते हुए सुसाइड तक की कोशिश की है।
सावधानी से छूट सकती है लत –
बच्चों में गेम की आदत छुड़ाने के लिए ज़रूरी होगा कि माता-पिता बच्चों के साथ समय ज़्यादा बिताएं। उनके साथ खेलें। उनकी बातों को समझेंगे तो धीरे-धीरे बच्चों में गेम खेलने की आदत छूट सकती है। माता-पिता ख़ुद भी मोबाइल फ़ोन पर ज़्यादा समय ना बिताएं। कई मामलों में बच्चे अभिभावकों से गेम खेलना सीखते हैं।
छोटे बच्चों को मोबाइल ना दें। अगर ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल दे रहे हैं, तो उसमें यूपीआई या बैंक की एप आदि ना रखें। पढ़ाई के लिए अलग से मोबाइल दे सकते हैं, जिसमें अतिरिक्त एप्स ना हों। बच्चों को आपके यूपीआई, बैंक एप के अनलॉक पिन और ट्रांज़ैक्शन पिन से भी अनजान रखें। बच्चों से कभी भी ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन नहीं कराएं क्योंकि कुछ पल के लिए यह अभिभावकों के लिए गर्व की बात हो सकती है लेकिन आगे चलकर यह परेशानी का सबब बन सकती है।